सरकार की बेचैनी का कारण उसकी आलोचना में आम आदमी का शामिल होना है...
अंततः 31 मई को रिटायर होने के कुछ घंटे पहले केंद्र के गृहमंत्रालय ने बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को वह कारण बताओ नोटिस थमा दिया जिसका इंतजार बंदोपाध्याय और ममता बनर्जी के साथ साथ बंगाल के मामले में रूचि रखने वाले प्राय: सभी कर रहे थे| जैसा कि सभी जानते हैं कि उसके पहले केंद्र सरकार ने उन्हें ट्रांसफर करके दिल्ली बुलाया था| जब अमित शाह के गृह मंत्रालय के उस आदेश का पालन नहीं हुआ तभी यह स्पष्ट हो गया था कि अब उन्हें प्रधानमंत्री की बैठक से अनुपस्थित रहने के लिये नोटिस थमाया जायेगा| जाहिर है यदि वे कोई उपयुक्त कारण नहीं बता पाये तो उनके ऊपर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन में बाधा डालने की धारा में कार्यावाही होगी और जिसकी सजा जुर्माना अथवा जुर्माना के साथ दो साल तक के कारावास की हो सकती है| यह भी हो सकता है कि मामला न्यायालय की शरण में जाने तक राष्ट्रद्रोह का मामला भी बन जाये| जो लोग केंद्र की इस सरकार के कार्य करने के तौर-तरीकों पर बारीकी से नजर रखते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीति, प्रशासन से लेकर सामाजिक परिस्थितियों तक का ऐसा कोई भी पहलू नहीं है जिसमें लोकतंत्र के ज़िंदा बचे रहने की कोई भी संभावना अब शेष रही हो| देश में लोकतंत्र न तो बीमार है, न ही आक्सीजन या वेंटिलेटर पर है, लोकतंत्र मृत है उसमें सांस ही नहीं है|