अब ऐसा तो नहीं है की मन की बात करने पर किसी का कोई कॉपी राईट हो। ये तो मन की बात है। कोई कहानी या कविता या उपन्यास तो है की नहीं कि भाई आपने मेरा लिखा चुरा लिया है। मैं अब आपके ऊपर मुकदमा दायर करूँगा. वैसे भी मन की बात सिर्फ मन की बात होती है। कोई काम की बात तो नहीं कि इसके पीछे झगड़े होने लगें कि न पहले मैंने की थी तूने नहीं और सामने वाला कहे कि नहीं तूने नहीं पहले मैंने की थी। वैसे मन की बात होती बड़ी अच्छी है। मन की बात की आड़ में आप मनगढ़ंत बात भी कर सकते हैं और यदि आपकी पूछ परख अच्छी है तो मनगढ़ंत बात को सच साबित करने के लिये गवाह भी जुटा सकते हैं। वैसे बातें दो ही प्रकार की होती हैं एक मन की बात और दूसरी काम की बात। जब मन की बात होती है तो काम की बात नहीं होती है। जब काम की बात होती है तो कोई बात नहीं होती सिर्फ काम होता है।
अब ऐसा तो नहीं है की मन की बात करने पर किसी का कोई कॉपी राईट हो। ये तो मन की बात है। कोई कहानी या कविता या उपन्यास तो है की नहीं कि भाई आपने मेरा लिखा चुरा लिया है। मैं अब आपके ऊपर मुकदमा दायर करूँगा. वैसे भी मन की बात सिर्फ मन की बात होती है। कोई काम की बात तो नहीं कि इसके पीछे झगड़े होने लगें कि न पहले मैंने की थी तूने नहीं और सामने वाला कहे कि नहीं तूने नहीं पहले मैंने की थी। वैसे मन की बात होती बड़ी अच्छी है। मन की बात की आड़ में आप मनगढ़ंत बात भी कर सकते हैं और यदि आपकी पूछ परख अच्छी है तो मनगढ़ंत बात को सच साबित करने के लिये गवाह भी जुटा सकते हैं। वैसे बातें दो ही प्रकार की होती हैं एक मन की बात और दूसरी काम की बात। जब मन की बात होती है तो काम की बात नहीं होती है। जब काम की बात होती है तो कोई बात नहीं होती सिर्फ काम होता है।
वैसे मन की बात करना भी सब के बस की बात नहीं होती है. मन की बात वही कर सकता है जो बहुत बात करता है। कम बात करने वाला मन की बात नहीं करता। दरअसल मन की बात करने के लिये मनगढ़ंत बात करनी होती है और कम बात करने वालों को मनगढ़ंत बात करते नहीं बनता। वैसे जानकार लोग कहते हैं कि जो काम करते हैं वे मन की बात नहीं कर सकते क्योंकि काम करने के लिये सोच-विचार करना होता है। प्लानिंग करनी होती है। अनेक जानकारों से सलाह मशविरा करना होता है तब जाकर काम की बात होती है। मन की बात करने के लिए यह सब नहीं करना होता। जो बात मन में आये उसे कर लो। उसके बाद उस बात को सही सिद्ध करने के लिये और मन की बात करते जाओ। इस तरह मन की बात आप अनवरत कर सकते हैं पर काम की बात में ये बात कहाँ।
मन की बात की एक खासियत और होती है। इसमें काम की बात नहीं होती मजे की बात होती है तो लोगों को मन की बात समझने के लिये दिमाग खर्च नहीं करना पड़ता।इसलिये मन की बात लोगों को समझ में आये न आये पर अच्छी बहुत लगती है। इसीलिये मन की बात करने वालों को लोग बहुत पसंद करते हैं। अब शेखचिल्ली को ही लो। उसने हवा में महल बनाया। व्यापार किया। राजकुमार बन गया।शादी कर ली और उसे कुछ भी काम नहीं करना पड़ा। अब ये बात अलग है कि जब वह हवाई महल गायब हुआ तो लोग उस पर बहुत हँसे पर वो लोकप्रिय तो आज तक है। कुछ मन की बात करने वाले सनकी भी कहलाते हैं।पर, जो पक्का मन की बात करने वाला होता है वो लोगो की परवाह नहीं करता बल्कि लोग कहें उसके पहले ही कहने लगता है कि मुझे मालूम है लोग मुझे सनकी कहते हैं। कहो और बार बार कहो। पर, मेरी मन की बात सुनो।
अरुण कान्त शुक्ला, 12 मई 2021
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